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आखिर क्यों धारण करना पड़ा था भगवान विष्णु को एक जंगली पशु का रूप ? जानिए वजह...

Jan 09 2019

Posted By:  Sandeep

भगवान विष्णु के चमत्कारों से पूरा ब्रह्माण्ड परिचित है | जब से सृष्टि का निर्माण हुआ है तभी से उन्होंने अनेको बार अपने बल और बुद्धि से इस पृथ्वी को आतताई शक्तियों से बचाया है | भगवान विष्णु धरतीवासियों के दुखो का निवारण करने के लिए बार-बार आते है और पापियों का नाश करके धरती लोक से वापस चले जाते है | आज हम आपको ऐसी ही एक घटना बताने जा रहे है जिसमे भगवान विष्णु को एक वराह ( जंगली सूअर ) का रूप धारण करना पड़ा था | 


सतयुग में महर्षि कश्यप नाम के ऋषि थे | हिन्दू धर्म ग्रंथो में ऐसा कहा गया है की यह सप्तऋषियों में से एक ऋषि थे | उनके ज्ञान और शालीनता का कोई भी सानी नहीं था | यह महाज्ञानी पंडितो में से एक थे | महर्षि कश्यप की सुंदरता देखकर दिति नामक राक्षसी उनपर मोहित हो गयी | दिति महर्षि कश्यप के पास पुत्र प्राप्ति की चाह में आ गयी |

कश्यप जी ने कहा की यह समय काम में लीन होने का नहीं है | भगवान शंकर इस समय पृथ्वी का विचरण करने के लिए आते ही होंगे | इसलिए मुझे इस समय सन्ध्यावन्दन करना है | तुम्हे एक प्रहार इंतजार करना पड़ेगा | उसके बाद मैं तुम्हारे मन की अभिलाषा पूर्ण करूँगा | महर्षि कश्यप जी के समझाने पर भी दिति नहीं मानी | उसने कश्यप जी को उसी समय काम में लीन होने पर मजबूर कर दिया | 

इसके बाद जब उसे तृप्ति मिल गयी तो दिति ने कश्यप जी क्षमा मांगी और कहा की मैं काम वासना में इतनी लीन हो चुकी थी की मुझे कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था | कश्यप जी ने कहा की तुमने घोर अपराध किया है जिसका दंड तुम्हे भुगतना पड़ेगा | इसका दंड स्वयं भगवान विष्णु तुम्हे देंगे | जिन पुत्रो की प्राप्ति के लिए यह सब तुमने किया है उनका वध भगवान विष्णु के हाथो ही किया जायेगा | दिति ने कहा मैं यह गर्भ नहीं चाहती हूँ | इस गर्भ को तो नष्ट करना अब संभव नहीं है | लेकिन यदि भगवान विष्णु मेरे पुत्रो का वध करेंगे तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी |



महर्षि कश्यप ने कहा की तुम्हारे दो पुत्र होंगे जो पराक्रम में देवताओ से अधिक शक्तिशाली होंगे | लेकिन इनके जन्म लेते ही धर्म का नाश होना शुरू हो जायेगा | चारो और सिर्फ अंधकार और पाप ही रह जायेगा | लेकिन तुम्हारा नाती तुम्हारे कुल को उज्जवल बनायेगा | वह तुम्हारा नाम रोशन करेगा |

दिति के दो पुत्र हुए जिनका नाम हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष था | हिरण्याक्ष भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर्वत चला गया और तीनो लोक पर राज करने का वर प्राप्त कर लिया | ऐसा कहा जाता है की इसके बाद हिरण्याक्ष का शरीर पर्वत के समान हो गया | उसने देव लोक पर आक्रमण करके देवताओ को भगा दिया | इसके बाद पाताल लोक जीतने के लिए चला गया | वहां उसे वरुण देवता मिले जिन्होंने उसे भगवान विष्णु से युद्ध करने के लिए कहा |

लेकिन हिरण्याक्ष ने ऐसा नहीं किया उसने पृथ्वी को अपने हाथो से उठाया और ब्रह्माण्ड के अनंत अंधकार में चला गया | इससे पृथ्वी का विनाश होना शुरू हो गया | क्योंकि उस अंधकार में सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँच रहा था | फिर सभी देवताओ ने पृथ्वी माँ को हिरण्याक्ष से बचाने की याचना की | इस समय भगवान विष्णु ने अपना वराह रूप धारण किया और पृथ्वी को अनंत अंधकार में ढूंढने के लिए चले गये | 


ऐसा कहा जाता है की भगवान विष्णु ने वराह का रूप इसलिए धारण किया था | क्योंकि वराह की सूंघने की शक्ति काफी अधिक होती है | जिससे भगवान विष्णु को पृथ्वी की गंध दूर से ही मिल सके | भगवान विष्णु ने हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को अपने स्थान पर स्थापित कर दिया | 
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