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क्या थी मजबूरी, माता पार्वती को करनी पड़ी गणेश जी की उत्पत्ति | जानिए...

Jan 15 2019

Posted By:  Sandeep

भगवान गणेश को सबका हित करने वाला बताया जाता है | ऐसा कहा जाता है की भगवान यदि किसी व्यक्ति पर मेहरबान हो जाए तो उसे जीवन का हर सुख प्राप्त हो जाता है | भगवान गणेश देवताओ में श्रेष्ट है इसी कारण उनकी पूजा हर घर में की जाती है | लेकिन क्या आप जानते है माता पार्वती ने गणेश जी को क्यों बनाया था और उन्हें हाथी का मुख कैसे प्राप्त हुआ | आज हम आपको यही बताने जा रहे है |   


हम सभी जानते है की माता पार्वती ने गणेश को जन्म नहीं दिया था | बल्कि उन्हें बनाया गया था | लेकिन हम आपको बता दें की माता पार्वती के पुत्र कार्तिके था | जो उनकी हर आज्ञा का पालन करता था | फिर भी माता पार्वती ने भगवान गणेश को बनाया | माता पार्वती के द्वारा गणेश जी को बनाने का कारण का कोई भी शास्त्र और पुराण पूर्ण रूप से समर्थन नहीं करता है | लेकिन इसकी कुछ दंतकथाएं प्रचलन में अवश्य है |

शिवपुराण के अनुसार माता पार्वती एक दिन स्नान करने जा रही थी | उसी दौरान वह सोच रही थी की कैलाश पर्वत चारो ओर से सुरक्षित है | यहाँ देवताओ से लेकर असुरो तक कोई भी जीव बिना शिव जी की आज्ञा से नहीं आ सकता है | लेकिन जब मैं अपने कक्ष में होती हूँ तो वहां शिव जी आ जाते है | मैं अपने आप को शिवजी के सामने विश्राम अवस्था में पाती हूँ तो स्वयं को क्षमा नहीं कर पाती हूँ | बाहर द्वारपालों में इतना साहस नहीं है की वह भगवान शिव को कक्ष के भीतर प्रवेश करने से रोक सके |

इसलिए मुझे एक ऐसे द्वारपाल ( गण ) की आवश्यकता है जो सिर्फ मेरी आज्ञा का पालन करे | इसके पश्चात् माता पार्वती स्नान करने लगी | उसी दौरान उन्हें एक युक्ति सूझी | उन्होंने अपने मेल और उबटन से एक गण का निर्माण दिया और उसमे जान फूंक दी | माता पार्वती ने उसे गणेश ( गणो का स्वामी ) नाम दिया | उससे कहा की तुम केवल मेरी ही आज्ञा का पालन करना, किसी अन्य की आज्ञा का पालन ना करना | माता का आदेश पाकर गणेश कक्ष के द्वार पर जाकर खड़ा हो गया |



कुछ समय पश्चात् वहां भगवान शंकर आ गये और माता पार्वती के भवन की ओर जाने लगे | जिस कारण गणेश ने उन्हें रोका | किसी साधारण गण ( द्वारपाल ) के रोके जाने पर शिवजी क्रोधित हो गए और उन्हें अपने प्रलयधारी त्रिशूल से गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया | इस बात पर माता पार्वती को क्रोध आ गया, जिससे धरती का विनाश होना शुरू हो गया | कुछ समय पश्चात् वहां ब्रह्म देव प्रकट हुए और भगवान शिव को किसी अन्य का मस्तक लगाने की विनती की | भगवान शिव ने नंदी सहित कैलाश पर्वत पर उपस्थित सभी गणो से कहा की आप सभी को निश्चित समय में ऐसे बालक का सर काट कर लाना है जिसकी माता उसे पीठ देकर सो रही हो | उस बालक का सर ना काटना जिसकी माता उसे वक्ष से लगा कर सो रही हो |

गणो ने पूरा धरतीलोक छान डाला लेकिन ऐसा कोई भी बालक नहीं मिला, जिसे कोई माता पीठ देकर सो रही हो | लेकिन कुछ दुरी चलने के बाद एक हाथी का बच्चा मिला | जिसे उसकी माता पीठ देकर सो रही थी | उसका सर काटने के पश्चात् उस सर को भगवान शिव को दे दिया गया | जिसके बाद देवताओ ने गणेश जी को अनेक वरदान दिए | लेकिन यह पीठ देकर सोने वाला तथ्य सिर्फ दंतकथाओं में ही सुनने को मिलता है | शिवपुराण द्वारा इसके समर्थन को लेकर थोड़ी शंका है | 


जबकि ब्रह्मवैवर्तपुराण में इसके पीछे का अलग ही कारण बताया जाता है | इसके अनुसार गणेश जन्म पर शनि कैलाश पर्वत पर गए थे | जहाँ नजरे झुकाये खड़े हुए थे | माता पार्वती के कहने पर उन्होंने अपनी नजर गणेश के मस्तक पर डाली, जिस वजह से गणेश का मस्तक काटकर दूर गिर गया | देवताओ के आग्रह पर पक्षीराज गरुड़ ( विष्णु जी का वाहन ) ने पृथ्वीलोक से एक हाथी का सर लेकर गणेश को लगाया | इस प्रकार गणेश जी को गज का मुख प्राप्त हुआ |
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