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काली माता का ऐसा मंदिर जहाँ प्रसाद के स्थान पर चढ़ाई जाती है शराब | जाने...

Jan 17 2019

Posted By:  Sandeep

आपने काली माँ के अनेक मंदिरो के बारे में सुना होगा | लेकिन क्या आप ऐसे मंदिर के बारे में जानते है जिसमे माता के प्रसाद के स्थान पर शराब का भोग लगया जाता है | आज हम आपको भारत के ऐसे ही मंदिर से रूबरू करवाने जा रहे है | यह मंदिर स्थित है राजस्थान के नागौर जिले में | जहां प्रसाद के रूप में शराब चढ़ाई जाती है |


नागौर में रियांबड़ी तहसील के भवाल गाँव में काली माता का 800 साल से भी पुराना यह मंदिर स्थित है | यहाँ काली माँ को भंवाल माता के नाम से जाना जाता है | इस मंदिर की खास बात ये है कि देवी को ढाई प्याला शराब ही चढ़ाई जाती है | यदि इस प्याले में एक बूंद कम प्रसाद हो तो माता इस ग्रहण नहीं करती हैं |

इस मंदिर में सबसे हैरान कर देना वाला वाकया उस समय दिखाई देता है जिस समय माता काली शराब को ग्रहण करती है | जी हाँ, यह सुनने में काफी अजीब लगता है लेकिन यही सत्य है | जब यहाँ श्रद्धालु ढाई प्याला शराब लेकर जाता है तो पुजारी उस प्रसाद को माता के मंदिर के सामने रख देता है | हैरान कर देने वाली बात ये है की जब पुजारी प्रसाद को माता के चरणों में रखकर उनसे शराब पिने का आग्रह करता है और अपनी आँखे बंद कर लेता है |



इसके बाद माता का चमत्कार दिखाई देता है | ऐसा कहा जाता है की जब पुजारी अपनी आंखे खोलता है तो उसे शराब कम नजर आती है | ऐसा पुजारी 3 बार करता है अंत में शराब का प्याला आधा रह जाता है जिसे प्रसाद स्वरुप भक्तो में बाँट दिया जाता है | यहाँ ऐसी मान्यता है की माता हर किसी व्यक्ति की शराब नहीं पीती है | वह सिर्फ उसी व्यक्ति की शराब पीती है जिसकी मनोकामना पूर्ण होनी होती है |

जब माता शराब पीती है तो श्रद्धालु समझ जाते है की माता उसकी मनोकामना अवश्य पूरी करेगी | इसके बाद जब मनोकामना पूरी होती है तो भक्त पुनः माता को शराब पिलाने के लिए आ जाता है | यहाँ माता की दो मूर्तियां है एक ब्राह्मणी माता की और दूसरी भंवाल माता की, ब्राह्मणी माता को मीठा प्रसाद चढ़ाया जाता है | जबकि भंवाल माता को शराब का भोग लगया जाता है | 


वैज्ञानिक भी इस तथ्य से परेशान है की प्याले में रखी शराब आखिर गायब कहाँ हो जाती है ? उन्होंने इसे कुदरत का करिश्मा ही कहा है | इस मंदिर के बारे में कहा जाता है की लूट के माल से चोरो ने इस माता के मंदिर का निर्माण करवाया गया था | यह मंदिर 12वीं सदी के अंत में बना था | 800 सालो से यह प्रथा यहाँ चली आ रही है |
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