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रामचरितमानस: सुखी जीवन जीना है, तो आज ही छोड़ दे ये 5 आदते...

Sep 28 2020

Posted By:  Sunny

प्रभु श्रीराम जी के परम भक्त तुलसीदास जी ने 16वीं सदी में रामचरितमानस की रचना की थी | तुलसीदास जी द्वारा अवधि भाषा में रचित इस ग्रन्थ में 27 श्लोक, 1074 दोहे, 4608 चौपाइयां, 207 सोरठा और 86 छंद है | कई धार्मिक मान्यताओं में रामचरितमानस को सकारात्मक ऊर्जा का स्त्रोत माना गया है | रामचरितमानस का रोजाना पाठ करने से जीवन में सकारात्मकता आती है और परेशानियां दूर होने लगती है |



रामचरितमानस में कुछ ऐसी चीजों के बारे में बताया गया है, जिन्हे करने से मनुष्य को बचना चाहिए | आज हम आपको उन्ही चीजों के बारे में जानकारी देने जा रहे है |

रागु रोषु इरिषा मदु मोहु, जनि जनि सपनेहुं इन्ह के बस होहु। 
सकल प्रकार बिकार बिहाई, मन क्रम बचन करेहु सेवकाई।।

अति


तुलसीदास जी द्वारा रचित इस श्लोक में कहा गया है कि जीवन में किसी भी चीज की अति बुरी होती है | अन्यथा मनुष्य को इसके नकारात्मक प्रभाव से गुजरना पड़ता है | अति चाहे प्रेम की हो या किसी काम की, दोनों में ही व्यक्ति को नुकसान उठाना पड़ता है | इसीलिए हर चीज की सीमा होती है, जिसे जानना जरुरी होता है |



क्रोध


श्लोक में आगे बताया गया है कि मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका क्रोध है | क्योंकि क्रोध में व्यक्ति अपना ही नुकसान करता है और साथ ही अपने परिवार पर भी मुसीबत लाता है | क्रोध में इंसान को दानव समान बताया गया है, क्रोध में व्यक्ति को अच्छे बुरे का ख्याल नहीं रहता | वह स्वयं ही अपने नरक के द्वार खोल देता है |

ईर्ष्या


श्लोक में आगे वर्णन किया गया है कि दुसरो की धन सम्पदा से ईर्ष्या करने वाला, व्यक्ति कभी सुखी नहीं रह पाता है | ऐसा व्यक्ति में धीरे धीरे छल कपट की भावना भी पैदा होने लगती है और वो कपटी बन जाता है | कौरव भी इसका उदाहरण है, जिन्हे उनकी ईर्ष्या ही ले डूबी |

अंहकार


मद में चूर व्यक्ति अर्थात अंहकार में चूर व्यक्ति अपने अंत को खुद बुलावा देता है | एक अंहकारी व्यक्ति को अच्छे बुरे का ख्याल नहीं रहता है | यदि कोई व्यक्ति उसे सही सलाह भी देता है, तो वो उसे अपना शत्रु समझ लेता है | और धीरे धीरे उसके अपने भी उससे दूर हो जाते है | आप इसका उदाहरण रावण से ले सकते है, जिसे उसका अंहकार ले डूबा और उसके अंहकार के चलते ही उसके अपने उससे दूर हो गए और मारे गए |

मोह


श्लोक के अंतिम भाग में बताया गया है कि मोह इंसान का स्वभाव है, अब चाहे मोह किसी वस्तु के प्रति हो या किसी मनुष्य के प्रति | किसी चीज से अधिक मोह समाज में इज्जत को दाँव पर लगा देता है और मनुष्य खुद ही अपना नुकसान करता है | आप ये बात महाभारत के महाराज धृतराष्ट्र से समझ सकते है, जिन्होंने अपने पुत्र मोह में पांडवो संग अन्याय किया और रामायण में कैकेयी ने पुत्र मोह में राम जी के साथ अन्याय करने की कोशिश की | उनके इन कृत्यों की वजह से आज भी इतिहास में उनकी नकारात्मक छवि बनी हुयी है |
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