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कैसे हुई थी गंगा नदी की उत्पत्ति ? जानिए इस रहस्य को...

Jan 13 2019

Posted By:  Sandeep

यदि भारत की सबसे पवित्र नदी की बात की जाए तो वह गंगा नदी ही है | इसे मोक्षदायिनी, कल्याणी, भागीरथी देवनदी भी कहा जाता है | यह भारत की सबसे लम्बी नदी है | यह 95 % भारत में बहती है और शेष 5 % बांग्लादेश में बहती है | जब यह नदी ब्रह्मपुत्र के साथ मिलती है तो इसका नाम मेघना हो जाता है और फिर यह नदी बांग्लादेश व भारत में संसार का सबसे बड़ा डेल्टा बनाती है | जिसे सुंदरवन डेल्टा कहा जाता है | आज हम आपको इस नदी की उत्पत्ति के बारे में बताने जा रहे है | 


यूँ तो गंगा नदी के बारे में अनेको कहानियां देखने को मिलती है | लेकिन हम आपको ऋषियों द्वारा अपने ग्रंथो में लिखी गयी सर्वप्रमाण्ति कहानी ही बताएँगे | ऐसा कहा जाता है की सतयुग में भगवान राम के एक पूर्वज थे | उनका नाम सागर था | जिन्होंने अश्वमेघ यज्ञ किया था | इस यज्ञ के नियमो के अनुसार एक शाही घोडा होता है जिस पर एक प्रशस्ति लगी होती है | जिसमे लिखा होता है की जो भी इस घोड़े को रोकेगा उसे यज्ञ के आयोजककर्ता के साथ युद्ध करना पड़ेगा |

जब भगवान राम के पूर्वज ने अपना अश्व अपने राज्य की सिमा के बाहर विचरण करने के लिए छोड़ा तो उसे किसी भी शासक ने नहीं रोका | क्योंकि उस समय ऐसा धरती पर कोई भी नहीं था जो सूर्यवंशियों को युद्ध में हरा सके | इसलिए अश्व विचरण करता हुआ पाताललोक चला गया | काफी दिनों तक जब अश्व अयोध्यापति को नजर नहीं आया तो उन्होंने अपने 100 पुत्रो को अश्व को खोज लाने का आदेश दिया | 

पिता की आज्ञा पाकर राजा सागर के 60 हजार पुत्रो ने अश्व को खोजने के लिए तीनो लोक खंगाल डाले और अंततः उन्हें पाताललोक में जाकर वह घोडा मिला | जिस जगह घोडा मिला था, उस जगह परम तपस्वी कपिल मुनि समाधी में लीन थे | उन्होंने कपिल मुनि की प्रतिष्ठा को ना समझते हुए उनका काफी अपमान किया | उन पर आरोप लगाया गया की उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को अपने आश्रम में बाँध रखा है |



कपिल मुनि अपने अपमान को सहन ना कर सके | उन्होंने अपने तपोबल के प्रभाव से सागर के 60 हजार पुत्रो को पत्थर की शिला बना दिया | जिससे उनकी आत्मा उन्ही शिलाओं में कैद होकर रह गयी | सैकड़ो वर्ष बीत गए, लेकिन कोई भी व्यक्ति राजा सागर के 60 हजार पुत्रो को संसार से मुक्ति नहीं दिला सका | इसी वंश में एक महान व्यक्ति भागीरथ का जन्म हुआ | जिन्होंने अपने पितरों का उद्धार करने का प्रण किया |

वे सीधे हिमालय पर्वत की ओर चले गए | जहां उन्होंने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की और उनसे इस समस्या का उपाय पुछा | जहाँ उन्होंने कहा की यदि देवनदी गंगा को धरती पर लाया जाए तो उसके स्पर्श को आपके पूर्वजो को मुक्ति मिल जायेगी | इसके लिए ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से गंगा नदी को धरतीलोक पर भेजने की प्रार्थना करनी थी | 


लेकिन ब्रह्मा जी ने कहा की यदि गंगा देवलोक से सीधे धरती पर आई तो उसके वेग के धरती के दो टुकड़े हो जाएंगे | इसलिए भागीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की | उन्होंने अपने तप से शिवजी को प्रसन्न किया | उन्होंने शिवजी से विनती करि की जिस समय गंगा धरती लोक पर आ रही होगी | उस समय वे उसे अपनी जटाओ में सीमित कर ले | फिर धीरे-धीरे धरती पर बहने दे | भगवान शिव ने ऐसा करने का वचन दिया और इस तरह गंगा नदी धरती लोक पर आई | 
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