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इस मंदिर में भगवान शिव से पहले की जाती है राक्षस की पूजा, जानिए इस पूजा का रहस्य..

May 16 2019

Posted By:  AMIT

आज भी दुनियाभर में ऐसे कई चमत्कारिक मंदिर है जो अपने आप में एक अनोखी कहानी समेटे हुए है, आज के वक्त दुनियाभर में भगवान शिव के कई मंदिर हैं | जहा उनकी बड़ी श्रद्धा से पूजा की जाती है लेकिन आज एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जहा भगवान शिव से पहले रावण की पूजा की जाती है इस मंदिर के पीछे एक गहरा रहस्य छिपा हुआ हैं | 


रहस्यमई इस मंदिर को कमलनाथ महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है जिलों की नगरी राजस्थान के उदयपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर झाड़ोल तहसील में आवारागढ़ की पहाड़ियों में शिवजी का यह प्राचीन मंदिर स्थित हैं | पुराणों के अनुसार इस मंदिर की स्थापना खुद लंकापति रावण ने की थी, कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहा रावण ने अपना सिर काटकर भगवान शिव के अग्निकुंड में समर्पित कर दिया था | तब रावण की इस भक्ति से प्रशन्न होकर भगवान शिव ने रावण की नाभि में अमृत कुंड स्थापित किया था, इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह बताई जाती है कि यहा भगवान शिव से पहले रावण की पूजा की जाती हैं | क्योंकि मान्यता के अनुसार अगर शिवजी से पहले रावण की पूजा नहीं की जाए तो उनके किए सारे काम व्यर्थ हैं | 


भारतीय पुराणों के मुताबिक कमलनाथ महादेव की एक कथा लिखी हुई है जिसके अनुसार एक बार रावण भगवान शिव को प्रशन्न करने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचा और तपस्या करने लगा | रावण के किए कठोर तप से शिव भगवान प्रशन्न रावण से वरदान मांगने को कहा, तब रावण ने भगवान शिव से लंका चलने का वरदान मांग लिया तब से ही भोलेनाथ शिवलिंग के रूप में जाने के लिए तैयार हो गए थे | इसके बाद भगवान शिव ने रावण को एक शिवलिंग दिया और यह शर्त रखी कि अगर लंका पहुंचने से पहले तुमने शिवलिंग को धरती पर कहीं भी रखा तो मैं वही स्थापित हो जाऊंगा, क्योंकि कैलाश पर्वत से लंका का रास्ता काफी लंबा था |


जब रावण को थकान महसूस हुई तो वो आराम करने के लिए एक स्थान पर रुक गया और ना चाहते हुए भी उसने भगवान शिवजी की शिवलिंग को धरती पर रख दिया |  आराम करने के बाद जब रावण ने शिवलिंग को उठाना चाहा तो शिवलिंग अपनी जगह से हिली नहीं, शिवलिंग रावण से टस से मस ना हुई और तब रावण को अपनी गलती का अहसास हुआ | लंका नरेश रावण ने पश्चाताप करने के लिए उसी जगह पर फिर से तपस्या करने लगा, वो दिन में एक बार भगवान शिव का सौ कमल के फूलों के साथ पूजा करता था और ऐसा करते-करते रावण को साढ़े बारह साल बीत गए | जब ब्रह्मा जी को इस बात का पता चला कि रावण की तपस्या सम्पूर्ण वह सफल होने वाली हैं |


तब भगवान ब्रह्मा ने उसकी पूजा विफल करने के लिए पूजा के वक्त एक कमल का फूल कम कर दिया, बाद में जब रावण ने देखा कि भगवान शिव की पूजा करने के लिए एक फूल कम पड़ रहा है तो उसने अपना सिर काटकर भगवान शिव के चरणों में अर्पित कर दिया | रावण की इस भक्ति से प्रशन्न होकर भगवान शिव ने उसको वरदान स्वरूप उसकी नाभि में अमृत कुंड की स्थापना कर दी और साथ में कहा कि अब से यह स्थान कमलनाथ महादेव के नाम से जाना जायेगा | 
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