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आखिर इस वजह से लेना पड़ा भगवान विष्णु को शेर के मुख वाला नृसिंह अवतार, जानिए शेर वाले भगवान की पूजा विधि की विशेषता..

May 18 2019

Posted By:  AMIT

भारतीय शास्त्रों के अनुसार वैशाल शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है आज ही के दिन भगवान विष्णु ने नृसिंह का अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध करके अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद की जान बचाई थी | भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर कई अलग-अलग अवतार लेकर अपने भक्तों को मुसीबतों से बचाया है, सतयुग से लेकर कलयुग तक भगवान विष्णु ने कुल 24 अवतार लिए है इनसे जुड़ी कुछ खास बातें.. 


भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार की कथा 
भगवान नृसिंह को पराक्रम का देवता माना जाता है इनके इस अवतार के पीछे कथा के अनुसार - कश्यप नाम के ऋषि के दो पुत्र थे, उनके दोनों ही पुत्र बहुत ही उग्र स्वभाव के थे | उनके उद्धंड स्वभाव और लोगों पर किये जाने वाले उनके अत्याचार को खत्म करने के लिए भगवान विष्णु वराह रूप लेकर पृथ्वी पर आए और उन्होंने हिरण्याक्ष का वध किया था, इसके बाद भाई की मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरणकश्यप ने इसका बदला लेने का निर्णय लिया | उसने तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया कि वह न किसी मनुष्य द्वारा मारा न जा सकें न ही किसी पशु द्वारा और न ही दिन में वह न ही रात में मारा जा सकें | 


वरदान मिलने के बाद उसके अंदर अहंकार आ गया जिसके बाद उसने इंद्र देवता का राज्य छीन लिया और तीनों लोको पर रहने वाले लोगों को पड़ताड़ित करने लगा, उसने घोषणा कर दी कि मैं ही इस संसार का भगवान हूं | सभी लोग मेरी पूजा करों और मैं जो चाहुंगा वहीं होगा, हिरण्यकश्यप के स्वभाव से विपरीत उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था अपने पिता के लाख मना करने और पड़ताड़ित करने के बाद भी वह भगवान विष्णु की पूजा करता था | हिरण्यकश्यप चाहता था कि उसका पुत्र उसे भगवान समझकर पूजे जब प्रह्लाद ने अपने पिता हिरण्यकश्यप की बात नहीं मानी तो उसने अपने बेटे को पहाड़ से धकेल कर मारने की कोशिश कि लेकिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की जान बचा ली | इसके बाद हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को जिन्दा जलाने की नाकाम कोशिश भी की, लेकिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद को हर बार बचा लिया था | 


अंत में क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को दीवार पर बांधकर आग लगा दी और बोला अब बता तेरा भगवान कहा है इस पर प्रह्लाद ने बताया कि भगवान यही है जहा आपने मुझे बांध रखा हैं | जैसे ही हिरण्यकश्यप ने अपनी गदा से प्रह्लाद को मारना चाहा, वैसे ही भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंभे से निकलकर आये और हिरण्यकश्यप का वध कर दिया | जिस दिन भगवान नृसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध कर अपने भक्त प्रह्लाद के जीवन की रक्षा की और उस दिन को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाने लगा, इस दिन प्रातःकाल स्नान करने के बाद भगवान नृसिंह यानि विष्णु भगवान की पूजा-आरती करें, इस दिन कुछ लोग व्रत भी करते हैं | भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी जी की भी पूजा की जाती हैं | 

भगवान नृसिंह की पूजा विधि 
भगवान नृसिंह की पूजा के लिए फल, पुष्प, पंचमेवा, कुमकुम केसर, नारियल, अक्षत और पीताम्बर रखें, गंगाजल, काले तिल, पंचगव्य जैसी चीजों का हवन सामग्री का पूजन में इस्तेमाल करें | भगवान नृसिंह को प्रसन्न-खुश करने के लिए उनके मंत्र का जाप करें, इस दिन व्रत करने वाला भगवान नृसिंह का आशीर्वाद पाने के लिए अपने सामर्थ्य अनुसार तिल, स्वर्ण तथा वस्त्रों को दान देना चाहिए | 
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