Category Archives:  Spiritual

भारतीय शास्त्रों की गौरव गरिमा का प्रतीक है वट सावित्री व्रत, ऐसे पूजा करने से होते है लाभ...

May 24 2019

Posted By:  AMIT

शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या वट 'सावित्री अमावस्या कहलाती है इस दिन सौभाग्यवती महिलाएं अखंड सौभाग्य प्राप्त करने के लिए वट सावित्री व्रत रखकर वटवृक्ष और यमदेव की पूजा करती हैं | भारतीय शास्त्रों के मुताबिक यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक एंव पर्याय बन चूका है इस वट सावित्री व्रत में वट और सावित्री दोनों का पूजा में विशेष महत्व होता हैं | 
वट-सावित्री व्रत कथा 
शास्त्रों में बताया जाता है कि, सावित्री राजा अश्वपति की पुत्री थी जिसे राजा ने कठिन तपस्या करने के बाद देवी सावित्री से प्राप्त किया था | इसलिए राजा ने उनका नाम सावित्री रख दिया था, सावित्री बहुत ही गुणवान व रूपवान थी लेकिन उसके अनुरूप योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुखी रहने लगे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री को स्वयं अपना वर तलाशने के लिए भेज दिया और इस तलाश में सावित्री ने एक दिन वन में सत्यवान को देखा और उसके गुणों के कारण मन में उसे वर के रूप में स्वीकार कर लिया था | सत्यवान साल्व देश के राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे लेकिन उनका राज्य किसी ने छीन लिया था और काल के प्रभाव के कारण सत्यवान के माता-पिता अंधे हो गए थे | 

कथा के अनुसार सत्यवान व सावित्री के विवाह के पूर्व ही नारद मुनि ने यह सत्य सावित्री को बता दिया था कि सत्यवान अल्पायु है अतः वे उससे विवाह न करें, यह जानते हुए भी सावित्री ने सत्यवान से विवाह करने का निश्चय किया और देवऋषि नारद ने कहा "भारतीय नारी जीवन में मात्र एक बार वरण करती हैं | अतः मैंने एक बार ही सत्यवान का वरण किया है और यदि उसके लिए मुझे मृत्यु से भी लड़ना पड़े तो मैं इसके लिए भी तैयार हूं |

नारद ने बताया उसकी मृत्यु का समय निकट आने पर मृत्यु से तीन दिन पहले ही अन्न जल का त्याग कर दिया था, मृत्यु वाले दिन जब जंगल में सत्यवान काटने के लिए गए तो सावित्री भी उनके साथ गई और जब मृत्यु का समय निकट आने लगा तो सत्यवान के प्राण हरने के लिए यमराज आये तो सावित्री भी उनके साथ चलने लगी | यमराज के बहुत समझाने पर भी वह वापस लौटने को तैयार नहीं हुई, तब यमराज ने उससे सत्यवान के जीवन को छोड़कर अन्य कोई भी वर मांगने को कहा |

तो उस स्थिति में सावित्री ने अपने अंधे सास -ससुर की नेत्र ज्योति और सुसर का खोया हुआ राज्य वापस मांग लिया किन्तु वापस लौटना स्वीकार नहीं किया | सावित्री की अटल पतिभक्ति से प्रसन्न होकर यमराज से जब पुनः उससे वर मांगने को कहा तो उसे सत्यवान के पुत्रों की मां बनने बुद्धिमता पूर्ण वर मांगा, यमराज के तथास्तु कहते ही मृत्युपास से मुक्त होकर वट वटवृक्ष के नीचे पड़ा हुआ सत्यवान का मृत शरीर जीवित हो उठा | तब से अखंड सौभाग्य वर प्राप्ति के लिए इस व्रत की परम्परा आरम्भ हो गई थी और इस व्रत में वटवृक्ष वह यमदेव की पूजा का विधान बन गया | 

महर्षि श्री अरविन्द ने भी इस कथा को मध्य में रखते हुए सावित्री महाकाव्य की रचना की है जिसमें उन्होंने सावित्री की कथा को आध्यात्मिक जीवन की यात्रा व उसकी अनुभूति के रूप में पिरोया-निभाया हैं | उसे सावित्री साधना का आध्यात्मिक ग्रन्थ भी कहा जा सकता हैं |

वट वृक्ष का महत्व 
भारतीय शास्त्रों के अनुसार पीपल वृक्ष के समान वट वृक्ष यानि बरगद का वृक्ष भी विशेष महत्व रखता है पुराणों के अनुसार वटवृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु व अग्र भाग में शिव का वास माना जाता हैं | अतः ऐसा माना जाता है कि इसके नीचे बैठकर पूजन व व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है यह वृक्ष लम्बे समय तक अक्षय रहता है इसलिए इसे अक्षयवट भी कहते है, जैन और बौद्ध धर्म के लोग भी अक्षयवट को अत्यंत पवित्र मानते हैं | जैन ग्रंथो के अनुसार माना जाता है कि उनके तीर्थकर भगवान ऋषभदेव ने अक्षयवट के नीचे बैठकर तपस्या की थी आज प्रयाग में इस स्थान को ऋषभदेव तपस्थली या तपोवन के नाम से जाना जाता हैं | 


बताया जाता है कि वटवृक्ष कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है सबसे पहले यह वृक्ष अपनी विशालता के लिए प्रसिद्ध है, दार्शनिक दृश्टिकोण से देखा जाये तो यह वृक्ष दीर्घायु का प्रतीक हैं | क्योंकि इसी वृक्ष के नीचे राजकुमार सिद्धार्थ ने बुद्धत्व के ज्ञान को प्राप्त किया और महात्मा बुद्ध कहलाए, बौद्ध ज्ञान को प्राप्त करने के कारण इस अक्षयवट वृक्ष को बोधिवृक्ष भी कहते है जो कि गया तीर्थ में स्थित हैं | अतः वट सावित्री व्रत के रूप में वटवृक्ष की पूजा यह विधान भारतीय संस्कृति की गौरव गरिमा का एक प्रतीक हैं और इसके द्वारा व्रक्षों के औषधीय महत्व व उनके देवरूप का ज्ञान भी होता हैं | 
  सरकारी/गैरसरकारी नौकरीयो की ताजा अपडेट पाए अब अपने मोबाइल पर साथ ही रोजाना करंट अफेयर