देश के जाने माने महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का निधन हो गया | वशिष्ठ जी ने आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती दी जिसके कारण उनका डंका पूरी दुनिया में बजा | वशिष्ठ नारायण सिंह जी का सफर बिहार के भोजपुर जिले के गांव वसंतपुर से स्टार्ट किया और नासा तक पहुंचा | लेकिन जवानी में ही सिजोफ्रेनिया नामक बीमारी के कारण वो पिछले दो दशकों से अपनी जिंदगी गुमनामी में जी रहे थे |
आइंस्टीन के "सापेक्ष सिद्धांत" को दी चुनौती
गणित के महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह जी ने आइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी | वशिष्ठ जी ने आइंस्टीन के सिद्धांत E = MC2 को चेलैंज किया था | वशिष्ठ जी ने मैथ के जीनियस कहे जाने वाले गौस की थ्योरी को भी चेलैंज किया था और पूरी दुनिया ने उनकी प्रतिभा का लौहा माना |
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर ने पहचाना उनकी प्रतिभा को
वशिष्ठ जी ने अपनी मैट्रिक की पढाई बिहार से ही की थी और वो संयुक्त बिहार में टॉपर भी रहे थे | वशिष्ठ जी जब पटना साइंस कॉलेज में पढ़ते थे तो उनके ऊपर कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर जॉन कैली की नजर उनके ऊपर थी | जॉन कैली वशिष्ठ जी की प्रतिभा को पहचाना और उनको अपने साथ अमेरिका ले गए | वशिष्ठ जी ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से सन 1969 में पीएचडी की और वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफ़ेसर बने | इस समय के दौरान उन्होंने नासा में भी काम किया लेकिन वहां पर उनका मन नहीं लगा और वो साल 1971 में भारत वापस आ गए | उसके बाद उन्होंने आईआईटी कानपूर, आईआईटी मुंबई, और आईएसआई कोलकाता में भी काम किया |
जब वशिष्ठ जी नासा में काम कर रहे थे तब अपोलो ( अंतरिक्ष यान ) की लॉन्चिंग से पहले ही 31 कंप्यूटर अचानक कुछ समय के लिए बंद हो गए | इसके बाद उन्होंने पेन और पेंसिल से ही कैलकुलेशन करना स्टार्ट कर दिया उसके बाद जब कम्प्यूटर्स ठीक हो गए थे तब कंप्यूटर और उनकी कैलकुलेशन एकदम बराबर थी |
शादी के बाद पता चला बीमारी के बारें में
साल 1973 में वशिष्ठ जी की शादी वंदना रानी सिंह से हुई थी | वशिष्ठ जी के असामान्य व्यवहार जैसे छोटी छोटी बातों पर गुस्सा होना, कमरा बंद कर दिनभर पढाई करना, रात भर जागते रहना आदि से तंग आकर उनकी पत्नी ने उनसे तलाक ले लिया और साल 1974 में उन्हें दिल का पहली बार दौरा पड़ा था |
सन 1989 में गायब हो गए थे
अगस्त 1989 में जब वशिष्ठ जी अपने भाई के साथ रांची से अपना इलाज करवाकर वापस आ रहे थे तब रास्ते में खंडवा रेलवे स्टेशन के पास उतर गए और भीड़ में कही गुम हो गए और करीब पांच साल बाद उनके गांव के लोगो को वो छपरा में मिले | उसके बाद राज्य ने उनकी सुध ली थी | उन्हें विमहांस बेंगलुरु इलाज के लिए भेजा गया | वहां पर उनका मार्च 1993 से 1997 तक इलाज चला और उसके बाद से ही वो अपने गांव में ही रह रहे थे |
उनका स्वास्थ्य दुवारा ठीक न होने के कारण उन्हें 4 सितंबर 2002 को मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञानं संस्थान में भर्ती कराया गया | लगभग एक साल दो महीने उनका वहां इलाज चला स्वास्थ्य में लाभ होने के कारण उन्हें वहां से छुट्टी दे दी और 14 नवंबर 2019 गुरूवार के दिन उनका निधन हो गया |